जब औरत घर की जिम्मेदारियां ना संभालना चाहे तो क्या करें?


इंसान को जीने के लिए इस दुनिया मैं बहुत कुछ करना पड़ता है. बचपन से बच्चों को पढाया लिखाया जाता केवल इसलिए है कि समाज मैं इज्ज़त से सर उठा के जी सकें. अपनी अपनी सलाहियत के अनुसार हर इंसान अपने रोज़गार का रास्ता चुन लेता है. कोई व्यापार करने लगता है, कोई विज्ञान मैं महारत हासिल करता है तो कोई बैंकिंग मैं और उसी के अनुसार नौकरी कर लेता है. इस प्रकार इंसान का जीवन दो ख़ास हिस्सों मैं बंट जाता है . पहला उसका घर और परिवार और दूसरा उसकी नौकरी या व्यापार.

किसी के पास अच्छा व्यापार या नौकरी है और उसका घर भी अच्छे से चल रहा है तो वो इंसान एक सुखी इंसान कहलाता है.लेकिन इन दोनों सुखों को पाने के लिए इन्सान को बहुत सी कुर्बानियां  देती पड़ती हैं, मेहनत करनी पड़ती है. इसमें औरत या मर्द का कोई सवाल नहीं आता बल्कि जैसा कि मैंने कहा अपनी अपनी सलाहियतो का इस्तेमाल करते हुए करते हुए  औरत और मर्द इन  सुखों को पाने कि कोशिश करते हैं.

यकीनन यदि किसी घर मैं पति और पत्नी दोनों घर पे बैठ के रोटियां  पकाएं , बच्चों की परवरिश मैं ही लगे रहें तो उनको यह सब करने के लिए धन कहाँ से आएगा? और यदि दोनों नौकरी करने लगें तो घर का सुकून ख़त्म हो जाता है क्यों कि केवल धन से ना तो औलाद  की  सही परवरिश संभव है और ना ही शाम के २ घंटो मैं घर को संभालना संभव है.

सबसे बेहतर तरीके से वही घर चलता है जहाँ एक धन कमाने के लिए घर से बाहर जाए और दूसरा घर पे रह ते हुए औलाद की परवरिश और घर तथा समाज के दूसरे कामों को अंजाम दे. कौन किस काम को करेगा इसका फैसला उनकी सलाहियत करेगी ना कि हमारी जिद.

यह औरत ही है जो अपने गर्भ मैं ९ महीने अपने बच्चे को रखती है और जन्म होने पे उस बच्चे को दूध पिलाना होता है. ऐसे मैं बच्चा अपनी माँ से लगा रहता है और वो जैसी  परवरिश करती है वैसा बनता चला जाता है. यह दोनों काम किसी मर्द के लिए करना संभव नहीं यह सभी जानते हैं.ऐसे मैं इस बात कि जिद करना कि हम घर को नहीं संभालेंगे ,बस बाहर जा के धन कमायेंगे कहाँ तक उचित है?

मर्द को ना गर्भ मैं बच्चे रखने हैं, ना दूध पिलाना है. शारीरिक रूप से भी अधिक मज़बूत है तो यदि वो बाहर के काम करे, मजदूरी करे, नौकरी करे ,व्यापार करे तो इसे  ना इंसाफी तो नहीं कहा जा सकता? यहाँ ना तो किसी गुलामी की बात है और ना ही किसी ज़ुल्म कि बात है. यह बात   है पति और पत्नी के समझोते की जिसके नतीजे मैं दोनों पारिवारिक सुख का अनुभव करते हुई सुखी जीवन व्यतीत करते हैं.

यदि किसी अलग परिस्थिति में या मजबूरी में यह आवश्यक हो जाए कि पत्नी नौकरी करे या ऐसी औरत जिसके  कोई औलाद नहीं, घर पे पड़े पड़े क्या करे तो यकीनन उसे भी अपने  व्यापार मैं साथ देना चाहिए और नौकरी कर के कुछ और धन कमाने कि कोशिश करनी चाहिए.

लेकिन पति कमाने में सक्षम है, व्यापार भी बढ़िया है फिर भी अपने औलाद के प्रति , घर के प्रति ज़िम्मेदारी को महसूस ना करते हुए  बाहर नौकरी करने कि जिद ,या किसी और काम मैं समय गंवाने की जिद क्या घर का सुकून और चैन ख़त्म नहीं कर देगी?

माना कि घर कि जिम्मेदारियों   को निभाना आसान नहीं, घर मैं बंध के रह जाना  पड़ता है , अक्सर बुज़ुर्ग महिलाएं घर की बहु को ना जाने क्या क्या सुना देती हैं, बहुत बार खराब पति होने पे पति की चार बातें घर  की सभी ज़िमेदारियां निभाने   के बाद भी  सुननी भी पड़ती है लेकिन यह हर घर मैं तो  नहीं होता?

क्या नौकरी मैं मर्द को ज़िल्लत का सामना नहीं करना पड़ता? क्या खराब अफसर के आ जाने पे बुरा भला नहीं सुनना पड़ता? यह तो जीवन है जिसमें इस तरह कि बातें होती रहती रहती हैं. इसका बहाना बना के यदि मर्द नौकरी की  ग़ुलामी से भागने लगे और औरत घर मैं रहके अपनी जिमेदारियों को निभाने को ग़ुलामी का नाम देते हुए उस से से भागने लगे तो यकीन जानिए मानसिक शांति जिसके लिए हम सब कुछ करते हैं ख़त्म हो जाएगी.  आज  तरक्की के युग में ऐसे घरों की संख्या दिन बा दिन बढती जा रही है.

ध्यान रहे अकारण जिद घरों को बसाते नहीं उजाड़ देते  हैं. कुछ लोग तो इतने अव्यवहारिक अपनी  जिद मैं हो जाते हैं कि तरक्की के नाम पे महिलाओं को शादी ना करने तक का मशविरा दे डालते हैं.

पति और पत्नी को अपनी जिद छोड़ के अपनी अपनी सलाहियतो, परिस्थियों के अनुसार काम को बाँट लेना चाहिए और सुख से जीवन व्यतीत करना चाहिए. यही वास्तविक तरक्की कहलाती है.