अपने जायज़ रिश्तों के प्रति वफादार रहिये



हमारी संस्कृति में एक नारी को माँ, बहन, पत्नी, पुत्री और पुरूष को पिता,भाई,पति.और पुत्र के रूप मैं देखा जाता है और जायज़ रिश्तो के इस रूप को इज्ज़त भी मिला करती है. नारी पे यदि कोई सबसे बड़ा ज़ुल्म इस पुरुष प्रधान समाज ने किया है तो वो है उसे भोग कि वस्तु बना के इस्तेमाल करना. वैश्यावृति इसका एक बेहतरीन उदाहरण है. औरत के कमज़ोर पड़ते ही मर्द द्वारा स्त्री के शरीर का इस्तेमाल करने जैसी बातें आम होती जा रही हैं.

जब ज़बरदस्ती किसी मर्द ने किसी महिला के शरीर को इस्तेमाल करना चाहा तो यह बलात्कार कहलाया. जब स्त्री ने अपने फायदे के लिए, पैसे के लिए मर्द को शरीर  सौंप दिया तो सौदा कहलाया और शरीर का सौदा करने वाली महिला वैश्या कहलाई. इस तरह का सौदा मर्ज़ी और मजबूरो दोनों हालत मैं होना संभव है.

मायानगरी मुंबई मैं एक इलाका है कमाठीपुरा जो एशिया के सबसे बड़े वेश्यावृति केन्द्र के रूप में जाना जाता है. .इस इलाके की तंग गलियों से गुजरते हुए आपको हर समय उत्तेजक वस्त्रों मैं मर्दों को रिझाती , बुलाती लड़कियां दिखाई दे जाएंगी. सुना गया है कि यहाँ नाबालिग  लड़कियों से ले कर अधेड़ उम्र तक कि वेश्याएं मिल जाती हैं जिनको यहाँ लाकर ट्रेनिंग दी गयी होती है कि पुरुषों को कैसे रिझाओ और यह काम वो मैडम करती हैं जो इनकी पूरी कमाई इनसे ले कर इनपे ज़ुल्म करती हैं और बदले मैं इनका पेट भरती  हैं. यह इलाका इतना मशहूर है कि जब जब अमरीका का कोई राष्ट्रपति मुंबई आया तो उसने इस इलाके को देखने कि ख्वाहिश अवश्य कि जो  सुरक्षा कारणों से कभी पूरी ना हो सकी.


यहाँ आयी वेश्याओं का दर्द उस समय सामने आता है जब वैश्यावृत्ति समुदाय से जुड़े परिवारों के कल्याण,पुनर्वास व उत्थान हेतु क़दम उठाई जाते हैं लेकिन उस इलाके से बाहर आने पे समाज, उनका गाँव यहाँ तक कि उनके माँ बाप भी इनको स्वीकार नहीं करते और मज़बूरन इन्हे इन्ही बदनाम गलियों में रहना पड़ता है. इन्हें स्वीकार ना करने का बड़ा कारण शायद यह  है कि अधिकतर वेश्याएं छोटी शहरों या गांवों से आती है जहाँ  स्त्री और पुरुष के नाजायज़  रिश्तों को समाज कुबूल नहीं करता. औसतन इनकी उम्र ३५ साल से अधिक कम ही हुआ करती है. यहाँ आयी बहुत सी लड़कियां तो वो हुआ करती हैं जिनको उनके ग़रीब घर वालों ने ही बेच दिया, बहुत सी लड़कियां ग़लत हाथों मैं पड के गुमराह हो गयीं और घर से भाग गयीं किसी के साथ और बेच दी गयीं.

कभी अँगरेज़ सैनिकों का ‘कम्फर्ट जोन’ रहा यह कमाठीपुरा आज भी 200 से ज्य़ादा पिंज़रानुमा कोठरियों में 5000 से भी ज्यादा यौनकर्मियों का रहवास है और नारी पे ज़ुल्म कि कहानी खुल के कह रहा है लेकिन  समाज इनको अपनाने को तैयार नहीं है. वेश्यावृत्ति के दलदल में फंसी यहाँ की महिलाओं का दुःख का कोई अंत नज़र नहीं आता. यह तो उनकी बात हुई वैश्यावृति जिनकी मजबूरी बन चुका है. इनका एक इलाका है और इनसे समाज को सेक्स से सम्बंधित बिमारीयों का खतरा बना रहता है. लेकिन इन इलाकों मैं ना जा कर इनसे बचा जा सकता है.

आज के युग मैं वैश्यावृति का एक नया रूप सामने आने लगा है वो हैं  समाज के  लोगों के बीच रहते हुए  हुए वैश्यावृति करना. आज महानगरों  मैं अक्सर ट्यूशन क्लास के नाम पे, डांस क्लास के नाम पे वैश्यावृति के अड्डे सुनने मैं मिल जाया करते हैं. बहुत से ऐसे घरों के बारे मैं भी सुनने मैं मिला करता है जहाँ सामने से लोगों को लगता है कि यह कोई परिवार रहता है लेकिन होता यह है वो  काल गर्ल्स का अड्डा. आज कल के कॉल सेंटर कि रात कि नौकरियों ने ऐसी स्त्रीयों का काम आसान कर दिया है क्यों कि ऐसे परिवार वाले लोगों को यही बताते हैं कि लड़की कॉल सेंटर मैं काम करती है जबकि वो कॉल सेंटर के नाम पे रात मैं अपने ग्राहकों के पास आया जाया करती है. आज पैसे  का महत्व बढ़ता जा रहा है और बड़े शहरों मैं जहाँ समाज के बंधन कम हुआ करते हैं लड़कियों का ऐसे धंधे मैं शौकिया लग जाने कि खबरें अक्सर प्रकाश मैं आया करती हैं.


महानगरों से निकल कर अब यह धंधा छोटे  शहरों तक जा पहुंचा है. मुगेरी लाल के हसीन  सपने दिखा के ,अच्छी नौकरियों का लालच दे के, फ्रेंडशिप के नाम पे , ग़रीब घरों कि महिलाओं को इस वैश्यावृति के काम मैं लाया जा रहा है. फ़ोन पे फ्रेंडशिप के नाम पे अश्लील बातें और अश्लीलता परोसने  का काम भी देखने को मिल जाया करता है. ऐसे वैश्यावृति के ठिकाने समाज के शरीफ कालोनी ,सोसाइटी मैं ही चलने के कारण  और टेलेफोन और इन्टरनेट के इस्तेमाल के कारण  लोगों के सामाजिक व नैतिक पतन का खतरा बढ़ता जा रहा है.


हमारे इस समाज मैं पति पत्नी, जैसे जायज़  रिश्ते तो पहचाने जाते हैं लेकिन उन रिश्तो का क्या जब  स्त्री  और पुरुष अपनी मर्ज़ी और ख़ुशी से  अपने शरीर को एक दूसरे को सौंप देते हैं. ऐसे  शारीरिक सम्बन्ध एक समय मैं कई लोगों से भी बन जाया करते  है. यह रिश्ते आम तो अवश्य होते जा रहे हैं लेकिन न तो मान्य है और न ही सामान्य  है. इसीलिए इसका कोई सही नाम  तक हमारा समाज नहीं दे सका है.समाज रिश्तों से बना करता है और मनुष्य जंगली नहीं एक सामाजिक प्राणी है.
  

ऐसे रिश्ते भी आज हमारे सामाजिक और नैतिक पतन का कारण बनते  जा रहे हैं यह रिश्ते सही है या गलत इसका फैसला तो इसी बात से हो जाता है कि इन रिश्तों का अंत हमेशा दुखद ही हुआ करता है. ऐसे रिश्तों मैं ग़लती हमेशा दोनों की ही हुआ करती है. आज़ादी के नाम पे रिश्तों के बंधन से इनकार करना आदिमानव तुग मैं वापस लौट जाने  जैसा है.  इन बुराईयों से बचने का एक ही तरीका है कि आप  अपने जायज़ रिश्तों के प्रति वफादार रहिये क्यों की यह प्यार का बंधन ही सही मायने मैं आज़ादी है.