सीधा सादा कुछ तॊड़- मरॊड़ कर लिखता हूं !
तुलसी मीरा कबीरा को जॊड़ कर लिखता हूं !!
मेरे असआरों से नाखुश क्यों रहते हैं लोग,
उनके लिये तो काफ़िया छॊड़ कर लिखता हूं !!
मेरी गज़ल आम आदमी की गज़ल हॊती है,
मैं अपने वज़ूद को झिझॊड़ कर लिखता हूं !!
मेरे लफ़्जों में कसक यूं उभरती है "राज़",
अपने ज़िगर का लहू निचॊड़ कर लिखता हूं !!
तुलसी मीरा कबीरा को जॊड़ कर लिखता हूं !!
मेरे असआरों से नाखुश क्यों रहते हैं लोग,
उनके लिये तो काफ़िया छॊड़ कर लिखता हूं !!
मेरी गज़ल आम आदमी की गज़ल हॊती है,
मैं अपने वज़ूद को झिझॊड़ कर लिखता हूं !!
मेरे लफ़्जों में कसक यूं उभरती है "राज़",
अपने ज़िगर का लहू निचॊड़ कर लिखता हूं !!