ऐ सबा लौट के किस शहर से तू आती है...
तेरी हर लहर से बारूद की बू आती है,
खून कहाँ बहता है पानी की तरह...
जिस से तू रोज़ यहाँ कर के वजू आती है,
धज्जियाँ तूने नकाबों की तो गिनी होंगी..
यूं ही लौट आती है, या कर के रफू आती है,
अपने सीने में चुरा लाई है किस की आहें..
मल के रुखसार* पे किस का लहू आती है...!!
तेरी हर लहर से बारूद की बू आती है,
खून कहाँ बहता है पानी की तरह...
जिस से तू रोज़ यहाँ कर के वजू आती है,
धज्जियाँ तूने नकाबों की तो गिनी होंगी..
यूं ही लौट आती है, या कर के रफू आती है,
अपने सीने में चुरा लाई है किस की आहें..
मल के रुखसार* पे किस का लहू आती है...!!