हम प्यार का ये मंजर दुनिया को दिखायेंगे
हर अपने मुखालिफ को सीने से लगायेंगे
उम्मीद नहीं उनसे मिल जाये वो जीते जी
हो जाऊंगा जब रूखसत तब देखने आयेंगे
वाकिफ ही ना थे इससे मालूम ना था हमको
अपना जिन्हें समझा हैं वो हमको सतायेंगे
इस रस्म-ए-मुहब्बत को रखना हैं हमें कायम
सौ बार वो रूठेंगे सौ बार मनायेंगे
मुमकिन हैं तरस हम पर आ जाये वैभव उनको
अफसाना-ए-गम अपना एक रोज सुनायेंगे...
हर अपने मुखालिफ को सीने से लगायेंगे
उम्मीद नहीं उनसे मिल जाये वो जीते जी
हो जाऊंगा जब रूखसत तब देखने आयेंगे
वाकिफ ही ना थे इससे मालूम ना था हमको
अपना जिन्हें समझा हैं वो हमको सतायेंगे
इस रस्म-ए-मुहब्बत को रखना हैं हमें कायम
सौ बार वो रूठेंगे सौ बार मनायेंगे
मुमकिन हैं तरस हम पर आ जाये वैभव उनको
अफसाना-ए-गम अपना एक रोज सुनायेंगे...