शादी के तीन साल बाद लड़की ने माना ‘भाव खाने’ के चक्कर में गंवाए अच्छे लड़के


दिल्ली. एक ज़माना था जब उसकी गिनती कॉलेज की सबसे हसीन लड़कियों में होती थी। उसकी एक-एक अदा के एक-एक हज़ार दीवाने थे। कोई उसकी स्माइल पर फिदा था तो कोई स्टाइल पर। कोई उसकी आंखों पर जान देता था तो कोई बालों पर। किसी ने उस पर रौब जमाने के लिए बाप से बाइक दिलाने के लिए झगड़ा किया तो किसी ने औकात से बाहर जाकर नए कपड़े सिलवाए। इस उम्मीद में कि शायद अच्छे कपड़ों से उनकी गंदी शक्ल की भरपाई हो जाए।
उदास मुद्रा में रूपवती

मगर वो रूपवती तो अपनी ही धुन में सवार थी। हर दिन चार-पांच लड़के उसे प्रपोज़ करते और वो उन्हें मिमोह चक्रवर्ती की फिल्म समझ नकार देती। डेढ़-दो सौ लड़कों के प्रेम की इस परीक्षा में फेल होने के बाद पूरे कॉलेज में बात फैल गई कि यहां टाइम वेस्ट करने का फायदा नहीं। औसत दिखने वाले लड़कों ने तो पहले ही कभी खुद को कॉम्पिटिशन में नहीं माना था, अब तो तथाकथित हैंडसम भी मैदान छोड़ने लगे थे।

इसी तरह के नाज़ों-नख़रों में उसने अपने कॉलेज के तीन साल गुज़ार दिए। पढ़ाई में उसका उतना ही इंटरेस्ट था जितना सरकारी बैंकों में जमा पैसे पर मिलता है, यानी बहुत कम! अलबत्ता ग्रेजुएट होते ही उसने पढ़ाई छोड़ दी। इधर पढ़ाई छूटी और उधर घरवालों ने एक बड़े बिज़नेसमैन से उसकी शादी कर दी। लड़के का जितना बडा बिज़नेस था उससे कही ज़्यादा बड़ी उसकी तोंद थी।

जानकारों के मुताबिक ऐसी हर चीज़ जिसमें ज़िंदगी बसती है, उसमें उस लड़के की कोई दिलचस्पी नहीं थी। न उसे घूमने का शौक था, न फिल्मों का। न उसे म्यूज़िक पसंद था, न किताबें और अगर उसे कोई किताब पसंद थी तो वो था बहीखाता, जिसमें वो अपने धंधे का हिसाब लिखता था।

वक्त के साथ-साथ पति की तोंद बढ़ती गई और उसी अनुपात में हमारी रूपवती की अपने पति में दिलचस्पी घटती गई। इसी कोफ्त में एक दिन उसने अपना फेसबुक अकाउंट बनाया।

हद दर्जे की ढपोल होने के बावजूद वो कुछ ही दिन में फेसबुक से वाकिफ हो गई। और फिर एक दिन आया वो लम्हा…सास कीर्तन पर गई थी, पति तोंद के साथ दुकान पर, कामवाली काम कर और फर्श पर पड़े चिल्लर उठा जा चुकी थी और दूधवाले के आने में अभी टाइम था….वो फेसबुक के सर्च ऑप्शन में गई और उसने टाइप किया…Rohit Sharma…जी हां, ये वही लड़का था जिसे मना करने का उसे बाद में अफसोस हुआ था।

आज वो एक अच्छी कम्पनी में काम कर रहा था, छह महीने पहले शादी कर विदेश में हनीमून मनाकर आया था। हनीमून की तस्वीरों में वो अपनी बीवी के साथ बहुत खुश नज़र आ रहा था। हर तस्वीर के नीचे उसने मज़ेदार कैप्शन लिख रखे थे। कुछ में शायरी भी कर रखी थी। वो उसकी क्रिएटिविटी से काफी इम्प्रेस हुई। खुश और मुस्कुराती तस्वीरें देखकर वो भी मुस्कुराने लगी। मगर इसी मुस्कुराहट के बीच अचानक वो नरगिस फाकरी जैसे अजीबो-गरीब एक्सप्रेशन देने लगी। न उससे हंसते बन रहा था, न रोते…न जाने क्यूं…किस वजह से…उसे रोहित की एवरेज-सी दिखने वाली बीवी से जैलिसी होने लगी। वो सोचने लगी कि ये लड़की तो मेरे आगे कहीं नहीं ठहरती। अगर मैंने रोहित को ‘हां’ कह दिया होता तो ये इससे कभी शादी नहीं करता…

फ्रस्ट्रेटिड आदमी का खाली दिमाग कुछ ज़्यादा ही कल्पनाएं करने लगता है…वो भी करने लगी …अगर इन फोटोग्राफ्स में इस लड़की की जगह मैं होती तो कितने फक्र से इसे अपने प्रोफाइल पर शेयर करती, ढेर सारे लाइक आते, अच्छे-अच्छे कॉमेंट मिलते…हम नई-नई जगहों पर जाते…ढेर सारी फोटो खिंचवाते…वो कल्पनाएं करती जा रही थी और खुश थी…तभी घंटी बजी…उसने दरवाज़ा खोला…सामने दूध वाला था…दूध लिया….वापिस आई…लैपटॉप गोद में रख दार्शनिक की तरह कुछ देर पंखे की ओर ताका… और फिर फेसबुक पर अपना पहला स्टेटस लिखा….काश! मैं इतने भाव न खाती।