मैंने सच देखा

बिन चप्पल भरी दुपहरी देखा,
सर्दी में तन की गठरी देखा,
देखा मानव को नंगा फिरते,
मानवता को अंधा बहरा देखा॥


कौओं का रंग सुनहरा देखा,
पशुओं का महलों में डेरा देखा,
धन की भूख है इतनी ज्यादा, घर में दुश्मन का पहरा देखा॥