आचरण देखिये आवरण को नहीं |


आचरण देखिये आवरण को नहीं |
मान्यता दीजिए अतिक्रमण को नहीं ||
ज़िन्दगी वह फलीभूत होती कहाँ
जो निभाती सखे! संतुलन को नहीं|
वो कहानी सदा ध्वंस करती कि जो;
त्यागती है कपट विषवमन को नहीं|
मानवीयत जहाँ दूर तक भी न थी,
आप अपनाइये उस चलन को नहीं||
दाग उस छंद के शीर्ष लग जायगा,
जो निभा पाएगा निज कथन को नहीं|
तथ्य की शोध में नित्य रहिये‘तुका’,
सत्य मिलता महज आकलन से नहीं