मेरे
अंतर्मन का फैलाव
पाने की कामना नहीं
खोने का दुःख नहीं
मुझको आह्लादित करता
किसका ये मौन राग
चलना है मुझको मीलों अभी
न पंखों की ज़रूरत
न क़दमों की नाप
कितनी विस्तृत मेरे घर की छत
जिसे दुनिया कहती आकाश
हर्ष-विषाद,घृणा-प्रेम, खोना-पाना
मेरी अंतर्यात्रा के सहयात्री
परमपिता
चल सकूँ निर्दिष्ट लक्ष्य तक
न भटकूँ कभी
अपने मंतव्य से
न पडूँ कभी चरण तुम्हारे
मुझको मुझसे मिला दो
इस पार-उस पार के संशय से
मुझको मुक्ति दिला दो..............
अंतर्मन का फैलाव
पाने की कामना नहीं
खोने का दुःख नहीं
मुझको आह्लादित करता
किसका ये मौन राग
चलना है मुझको मीलों अभी
न पंखों की ज़रूरत
न क़दमों की नाप
कितनी विस्तृत मेरे घर की छत
जिसे दुनिया कहती आकाश
हर्ष-विषाद,घृणा-प्रेम, खोना-पाना
मेरी अंतर्यात्रा के सहयात्री
परमपिता
चल सकूँ निर्दिष्ट लक्ष्य तक
न भटकूँ कभी
अपने मंतव्य से
न पडूँ कभी चरण तुम्हारे
मुझको मुझसे मिला दो
इस पार-उस पार के संशय से
मुझको मुक्ति दिला दो..............