क्या करें !





हर पल यही उलझन है कि क्या करें .... फिरते रहे जिंदगीभर यूँ ही उलझनों की अंधी गलियों में ... पर कुछ उलझन ऐसी भी होती हैं जो खूबसूरत होती हैं ... और कभी जी करता है कि फिर ये उलझन कभी न सुलझे ...

क्या करें उनसे शिकायत, क्या करें ।
जो है कातिल, वो अदालत, क्या करें ॥
हमने पूछा चाहिए क्या ये बता ।
मांग ली उसने मुहब्बत, क्या करें ॥
राह तकते हो गए आखिर फना ।
आ गया रोज़े क़यामत, क्या करें ॥
है बड़ी कातिल अदा, उनकी कसम ।
मार डालेगी शरारत, क्या करें ॥
वो सदा में सर्द मेहरी, क्या कहूँ ।
उफ़ नज़र की ये हरारत, क्या करें ॥
ज़ख्म सारे ज़र्द दिल में हैं रखे ।
जैसे हुज्जते इनायत, क्या करें ॥
‘सैल’ मैंने देखकर बेहिस् जहां ।

छोड़ दी है अब शराफत, क्या करें ॥