दर्द में दिल के ज़ख्म गाते रहे




फिर हाज़िर हूँ आप सबके सामने एक और छोटी सी ग़ज़ल लेकर .... बहर वही ''फायलातुन, फायलातुन, फायलुन' ...

दर्द में दिल के ज़ख्म गाते रहे ।
इस तरह वो हर सितम ढाते रहे ॥

राह में तो मुश्किलें आती रहीं ।

साथ जो थे छोड़कर जाते रहे ॥

याद जो आये थे पीछे छोड़कर ।
उस को अब हर मोड़पर पाते रहे ॥

वो किया न फिर यकीं हम पर कभी ।
अपने सर की हम कसम खाते रहे ॥

‘सैल’ जितनी दूर उनसे हो चले ।

याद उतनी वो हमें आते रहे ॥