श्री कृष्ण भगवान



गजब के पुरुष श्री कृष्ण
प्रश्नकर्ता : आज कृष्ण भगवान के विषय में कुछ कहिए।
दादाश्री : कृष्ण भगवान की क्या बात कहें। वे तो वासुदेव नारायण हैं, लेकिन हमारे लोग तो उन्हें कृष्णलीला में ही ले गए। बाकी कृष्ण भगवान तो योगेश्वर कृष्ण की बात है।
कृष्ण तो गजब के पुरुष हो गए, वासुदेव थे और आनेवाली चौबीसी में तीर्थंकर होंगे। कृष्ण तो नैष्ठिक ब्रह्मïचारी थे।
प्रश्नकर्ता : नैष्ठिक ब्रह्मïचारी का अर्थ क्या है?
दादाश्री : जिसके भाव में निरंतर ब्रह्मïचर्य की ही निष्ठा है, वह नैष्ठिक ब्रह्मïचारी कहलाता है। डिस्चार्ज व्यवहार में अब्रह्मïचर्य हो और चार्ज भाव हो रहा है अखंड ब्रह्मïचर्य। कृष्ण भगवान की सोलह सौ रानियाँ थीं फिर भी वे नैष्ठिक ब्रह्मïचारी थे। वह कैसे, मैं आपको समझाता हूँ। एक व्यक्ति चोरी करता है, लेकिन उसके भान में निरंतर रहता है चोरी नहीं करनी चाहिए, तो वह नैष्ठिक अचौर्य कहलाता है। 'क्या चार्ज हो रहा है' वह उसका हिसाब है। एक व्यक्ति दान दे रहा है और मन में भाव है कि 'इन लोगों का कैसे ले लूँ' तो वह दान नहीं कहलाता। इन इन्द्रियों से जो प्रत्यक्ष दिखाई देता है, नए बँधन का कारण नहीं होता, लेकिन अंदर क्या हिसाब बाँध रहा है। जो चार्ज करता है, वही नए बँध का कारण गिना जाता है।
प्रश्नकर्ता : तो फिर कृष्ण भगवान का चारित्र उलटा क्यों बताया जाता है?
दादाश्री : वे नैष्ठिक ब्रह्मïचारी थे। लेकिन उनके चारित्र को दुष्चारित्र बताकर बदनाम किया गया है। कृष्ण तो वासुदेव थे। वासुदेव अर्थात् सब चीज़ों के भोक्ता,फिर भी मोक्ष के अधिकारी होते हैं। महानपुरुष होते हैं।
वैकुंठ अर्थात्
कृष्ण भगवान कहते हैं कि वैकुंठ ले जाऊँगा। कृष्ण भगवान की भक्ति से चित्त वैकुंठ में ही जाता है। उसके बाद करने के लिए कुछ रहता ही नहीं तो किसी भी प्रकार की वृत्तियाँ नहीं उठती, सब कुंठित हो जाती है और उसके पश्चात् चेहरे पर टेन्शन रहित मुस्कान आती है, नहीं तो टेन्शन ही खींचता रहता है। जहाँ जहाँ वृत्तियाँ जाती है, वहाँ टेन्शन करने लगता है।