अजब है शख्स वो


अजब है शख्स वो, हर शय से रिश्ता तोड़ देता है.
न सूरत गर लगे अच्छी तो शीशा तोड़ देता है.

बहुत लड़ता है वो जी-जान से पहले पहल यारों,
मगर जब हार जाता है, खिलौना तोड़ देता है.

मैं जाने क्या समझ कर, उससे वादा रोज़ लेता हूँ,
वो जाने क्या समझ कर रोज़ वादा तोड़ देता है.

तुम्हारी रेशमी पलकों पे इक ठहरा हुआ आंसू,
मेरा इस जिंदगी भर का भरोसा तोड़ देता है.

टहलता हूँ मैं ख्वाबों के महल में जब कभी यारों,
कोई संगे हकीक़त मेरा सपना तोड़ देता है.

बहुत है तंज़ में ताक़त, बहुत रुसवाई में है दम,
यहाँ अच्छे-भलों को भी ज़माना तोड़ देता है.

बसी है जिंदगी इसमें अगर है क़ैद में पानी,
कहर बनता है जब भी वो, मुहाना तोड़ देता है.