"भारत फिर से जगत गुरु कहलायेगा"
1.इस धू - धू जल रहे विश्व को यदि कोई शांत कर सकता है, तो वो सिर्फ अध्यात्म की फुहारे "अध्यात्म" का अर्थ होता है, आत्मा को जान लेना, जब तक आत्मा का दर्शन नही हुआ तब तक मत समझ लेना की आप आध्यात्मिक हो गये, आज के इस विश्व को जगत गुरु की आवश्यकता है, जगतगुरु का अर्थ जो बिना किसी कसौटी के आपके भीतर आत्मा का दर्शन करवा दे, जिसका आकर ज्योति है, और उस ज्योति से एकाकार करवा दे वही जगतगुरु है,
2.तुम, संघर्श का मैदान छोड़ कर मत भागो, असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो, जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं,होती और कोशिश ऐसी की जन जन के भीतर (इश्वर क्रांति) लानी होगी जो एक पूर्ण ब्रहमनिष्ट, जो पर ब्रह्मा में निष्नात हो वही ला सकते है इसी लिए मानव को "शांति" और विश्व में "आध्यात्म क्रांति" की जरूरत है.
3.भारत की सभ्यता और संस्कृति संसार की प्राचीनतम सभ्यताओं में गिनी जाती है, यहाँ की कला, ज्ञान-विज्ञान, आयुर्वेद संसार के प्रकाशदाता रहे हैं ! हमारे देश का इतिहास गौरवमय है आज आपसी संघर्ष के कारण देश बिखराव के कगार पर खड़ा है परंतु यदि हम मन में देशप्रेम का निश्चय करके यही सोचें जियें तो सदा इसी के लिए ,यही अभिमान रहे, यह हर्ष निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष.
4.पूरे विश्व के मानचित्र पर भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ प्रकृति ने अपने खुले दामन से अपनी मनमोहक सम्पदा का विरासत प्रदान किया है जहाँ, हिमालय की अदभुत सौन्दर्यता, मनोरम नदी-घटिया, रेट से तपते रेगिस्तान, समुद्र का किनारा तथा एतिहासिक कलाकृत्यों से भरी विरासत हमारे देस की शान और पहचान है ! भारत ही एकमात्र देश है जहाँ के हर प्रान्त की अपनी अलग रंग तथा पहचान लेकिन उनमे इतनी विवधताओ के बावजूद भी एकता !
5.एक राष्ट्र् में विविधता स्वाभाविक है, पर उसमें विघटन न होकर संगठन होना चाहिए। संगठन ही राष्ट्र की शक्ति है। ऋग्वेद के संगठन सूक्त में संदेश है-
संगच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।
देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते।। ऋग्वेद 12/191.4
6.भारत हमेशा से बड़े बड़े योद्धाओ,ऋषि,मुनियों की तपोभूमि हैं
संस्कृति,संस्कार,यहाँ के लोगों के विचार,आचरण ही भारत की पहचान हैं!
मगर आज की दशा देखें तो भारतवासी ही भारत की बुराई करते नज़र आते हैं! आज
भारतियों की दशा और दिशा दोनों ही गलत हैं इसीलिए भारत में अब पहले जैसी वो
शांति,ज्ञान, एकता और प्रेम नहीं रहा! भारत को पहले जैसा बनाने के लिए... खुद
हमें ही बदलना होगा और बदलाव की सिर्फ १ मात्र औषधि हैं "
ब्रह्मज्ञान"..!
7.और भी आसमा है इस जहान से आगे, और भी मंजिले है इस मंजिल से आगे, और भी महोब्बत है इस महोब्बत से आगे, और भी हम है इस "मै" से आगे, और भी चाहत है मेरे इश्क से आगे, और भी देश है मेरे देश से आगे, लेकिन मेरा देश है इन सब से आगे, क्योकि मेरे देश में संस्कार है, अध्यातम है, गरिमा है, शहादत है, मानवता है, क्षमा है, इसी लिए मेरा भारत महान है....मेरा भारत विश्व-गुरु है... जगत-गुरु है
8.यूनान-मिस्र-रोम, सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाकी, नाम-ओ-निशाँ हमारा......
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी.............
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जहाँ हमारा......
9."100 बुझे हुए दीपक भी मिल कर एक दीपक को रोशन नहीं कर सकते,, परन्तु केवल एक जलता दीपक 100 क्या 10000000 बुझे हुए दीपक रोशन कर सकता है "
10.भारतीय होने पर गर्व करने के लिए हमें प्रेरित होने के लिए फिल्मों या प्रेरणा से भरी हुई देशभक्ति कविताओं की ज़रूरत पड़ती है. आज देश की हालत के लिए हम चाहे किसी को भी जिम्मेदार ठहरा दें, पर हमारा अंतर्मन इस बात को स्वीकारता है की हम अपने देश की... आत्मा से कहीं दूर निकल गए है. इस तरह अपनी मात्रभूमि के एहसास से दूर होने की वजह कुछ भी हो, परन्तु आत्मीयता से अपने राष्ट्र कि समस्याओं को सुलझाने के बारे में सोचने का कहीं किसी के पास वक़्त नहीं है, सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा" ये बोल जब हमारे कानों में पड़ते हैं तो हमारा रोम रोम भारतीय होने के गौरव से महक उठता है लेकिन भारत को पुन: फिर से जगत गुरु की उपाधि से नवाजा जायेगा, तभी यहाँ इंसान दूसरे के दर्द को समझ सकता है, और ये केवल ब्रह्मज्ञान (इश्वर दर्शन) द्वारा सम्भव है.
11.आज का मनुष्य बाहयाडंबर और माया के भंवरजाल में फंसकर शांति की खोज में छटपटा रहा है, चारों ओर के तनावों से ग्रस्त मानव समाज की शांतिसुख का एकमात्र मार्ग अध्यात्म और प्रभुचरण ही है, जो मानवमात्र को सच्चा इंसान बनाकर धरती को मुदमंगलमयी बनाने की प्रेरणा देता है, भारत की पहचान जगतगुरु के ज्ञान (इश्वर दर्शन) से होती है, जिसमें सामान्य पाठक भी सहज ही गोता लगाकर अपना और समस्त विश्व का कल्याण करने में सफल हो सकता है.
12.एक जहान सबसे प्यारा,एक घर सबसे न्यारा,
हिन्दुस्तान है नाम जिसका, जिसमे रहता हर वो सितारा,
यहाँ पूजे जाते सब धरम - अल्लाह, ईसा, नानक या हो राम,
आओ मिलकर करे इस पावन धरती को सलाम,
रोशन करे जगत गुरु (जो इश्वर दिखाने में सामर्थ हो ) से इस धरती का नाम....
13.एक बार फीर इन्कलाब लाना है ,
सोए हुए लहू को एक बार फीर जगाना है!
कौम नहीं अब मुल्क नहीं ,
इस बार पूरे विश्व को एक बनाना है !एक बार फीर इन्कलाब लाना है !
14.हमारा प्यारा देश ' विश्व गुरु ' रहा है ! यह देश ऋषि-मुनियों , धर्म-प्रवर्त्त्कों तथा महान कवियों का देश है ! यहाँ की कला , ज्ञान-विज्ञान , ज्योतिष , आयुर्वेद संसार के प्रकाशदाता रहे हैं ! त्याग हमारे देश का सदा से मूल-मंत्र रहा है ! जिसने त्याग किया , वह महान कहलाया ! बुद्ध , महावीर , दधीचि , रंतिदेव , राजा शिवी , रामकृष्ण परमहंस , महात्मा गाँधी इत्यादी महान विभूतियाँ इसका जीता-जगता प्रमाण हैं ! हमारे देश का इतिहास गौरवमय था, है और रहेगा.
15.सत्य की जिज्ञासा ऋषित्व का प्रथम लक्षण है। जिसे सत्य का साक्षात दर्शन हो जाए, वही ऋषि है। ज्ञान के उच्चतम बिन्दु तक पहुंच कर जो मानव कल्याण के लिए एक शिक्षक की तरह मार्गदर्शन देता है वही ऋषि है।
16.भारत ऋषि मुनियों का देश है। निरन्तर ध्यान, साधना, तप के माध्यम से वे मानव कल्याण का मार्ग खोजते रहे हैं। हमारे सारे धर्म ग्रन्थों में ऋषि-मुनियों से यही पूछा गया है कि ऐसा मार्ग बताइए जिससे मानव कल्याण का मार्ग सुगम हो। और ऋषि मुनियों ने कहीं कथा से, कहीं व्रत से, कहीं तप से कल्याण का मार्ग सुझाया है।