ये सोने की चिड़िया भारत था,
अब देश बना कंगालों का है।
चन्द्रगुप्त का अद्भुत भारत,
अब देश बना गद्दारों का है॥
नेतृत्व नैतिकता भूल चुका है,
जनता मूर्ख बनी बस सोती है।
अपने अधिकारों को आश्वासन के,
चरणामृत में घोलकर पीते हैं॥
उन पर लिखने की कोशिश क्यों हो?
क्यों हो उन पर लेखनी व्यस्त?
जो सोते महलों में लूटें भारत,
मानवता त्याग बने हैं धनपरस्त॥
ये कलम चलेगी अब जी भर कर,
दीनों हीनों के घावों से रिसकर।
अब बरसेगी उनकी भावना प्रखर,
माँ सरस्वती के रूपों में सजकर॥