बंदरिया


एक पेड़ पर एक बंदरिया रहती थी। वह बड़ी नेक और उदार थी। पेड़ के पास एक कुटिया थी। वहीं एक बुढ़िया रहती थी। वह बुढ़िया बहुत गरीब थी। एक दिन उसके पास चूल्हे के लिए लकड़ी नहीं थी, तो वह कागज जलाकर रोटियां बनाने लगी। कागज बार-बार बुझ जाते और बुढ़िया की रोटी कच्ची ही रह जाती। पेड़ पर बैठी बंदरिया यह देख रही थी। वह भागकर टाल पर गई और कुछ लकड़ियां उठा लाई। उसने लकड़ियां बुढ़िया को दे दीं। जब बुढ़िया की रोटियां खूब फूलने लगीं, तो बंदरिया रोटियों के चारों तरफ नाचने लगी। बूढ़ी ने पूछा - ‘ए बंदरिया, तू मेरी रोटी पर क्यों नाच रही है?’ बंदरिया बोली - ‘ए दैया, मैं टाल पे गई, टाल पे से लकड़ी लाई, लकड़ी मैंने तुझको दी, तूने उसकी रोटी बनाई, अब तू मुझे रोटी नहीं देगी?’बूढ़ी ने बंदरिया को हंसकर दो रोटी दे दी। रोटी लेकर बंदरिया आगे चल पड़ी। आगे उसे एक कुम्हार मिला। उसका बच्चा रोटी के लिए रो रहा था मगर कुम्हार का एक भी मटका नहीं बिका था, तो रोटी कहां से आतीं? बंदरिया ने कुम्हार से बच्चे के रोने का कारण पूछा और उसे दो रोटियां दे दीं। अब बंदरिया कुम्हार के मटके पर नाचने लगी। कुम्हार ने पूछा, ‘ऐ बंदरिया, तू मेरे मटके पर क्यों नाच रही है?’ बंदरिया बोली, ‘ए दैया, मैं टाल पे गई, टाल पे से लकड़ी लाई, लकड़ी मैंने बूढ़ी को दी, बूढ़ी ने उसकी रोटी बनाई, रोटी मैंने तुझे दी, अब तू मुझे एक मटका नहीं देगा?’ कुम्हार ने हंसकर बंदरिया को एक मटका दे दिया। मटका लेकर वह आगे चल पड़ी। आगे एक दूधवाला सिर पर हाथ टिकाए बैठा था। उसकी भैंसें पास खड़ी थीं। बंदरिया ने उसकी उदासी का कारण पूछा, तो वह बोला, ‘क्या बताऊं, मैं भैंसों को तो ले आया हूं मगर दूध निकालने का बर्तन तो घर पर ही भूल आया हूं। अब कैसे दूध निकालूं और कैसे बेचूं?’