अहिल्याबाई/Ahilya


रानी अहिल्या बाई होल्कर एक ऐसा नाम है जिसे आज भी प्रत्येक भारत वासी बडी श्रद्धा से स्मरण करता है। वें एक महान शासक और मालवा की रानी थीं। इनका जन्म सन् 1725 में हुआ था और देहांत 13 अगस्त 1795 को।

अहिल्याबाई किसी बड़े राज्य की रानी नहीं थीं लेकिन अपने राज्य काल में उन्होंने जो कुछ किया वह आश्चर्य चकित करने वाला है। वें एक बहादुर योद्धा और कुशल तीरंदाज थीं। उन्होंने कई युद्धों में अपनी सेना का नेतृत्व किया और हाथी पर सवार होकर वीरता के साथ लड़ी।

अपने जीवन काल में पति, पुत्र, पुत्री और दामाद सभी को अकाल मृत्यु का ग्रास बनते देखा। अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भी भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मंदिर बनवाए, घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण करवाया, मार्ग बनवाए, भूखों के लिए सदाब्रत (अन्नक्षेत्र ) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन हेतु की।

उन्होंने  काशी, गया, सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, द्वारिका, बद्रीनारायण, रामेश्वर, जगन्नाथ पुरी इत्यादि प्रसिद्ध  तीर्थस्थानों पर मंदिर बनवाए और धर्म शालाएं खुलवायीं। कहा जाता है क़ि रानी अहिल्‍याबाई के स्‍वप्‍न में एक बार भगवान शिव आए। वे भगवान शिव की भक्‍त थीं और इसलिए उन्‍होंने 1777 में विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया।

इंदौर वासी आज भी उन्हें अपनी माँ  के रुप मे ही याद करते हैं। माँ अहिल्याबाई आत्म-प्रतिष्ठा के झूठे मोह का त्याग करके सदा न्याय करने का प्रयत्न करती रहीं। अपने जीवनकाल में ही इन्हें जनता 'देवी' समझने और कहने लगी थी। उस काल में ना तो न्याय में शक्ति रही थी और न विश्वास। उन विकट परिस्थितियों में अहिल्याबाई ने जो कुछ किया-वह कल्पनातीत और चिरस्मरणीय है।

 इंदौर में प्रति वर्ष भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी के दिन अहिल्योत्सव बडी धूमधाम से मनाया जाता है.