(लेखक का नाम तो पता नहीं पर यह ब्लॉग नवभारत टाइम्स के लिया हुआ है. )
इस पर और डांट पड़ी – तुम ज्यादा चपड़चूं कर रहे हो। तुम ज्यादा पढ़े-लिखे हो या प्लानिंग कमिशन वाले लोग ज्यादा पढ़े-लिखे हैं! इत्ते-इत्ते इकोनॉमिस्ट मिलकर सरकार चला रहे हैं। उन्हें ज्यादा पता है कि तुम्हें ज्यादा पता है! वो लोग कह रहे हैं कि 32 रुपये रोज खर्च करके तो बंदा अमीर सा हो जाता है।
मैंने समझाने की कोशिश की, देखो! प्लानिंग कमिशन जैसी जगह की कैंटीनों में सरकारी सस्ती रेट पर खाना मिलता है। वहां तो 32 रुपये में आदमी तीन दिन का खाना खा ले। प्लानिंग कमिशन वाले अपनी कैंटीन के रेट से ही तो तय कर देते हैं, 32 रुपये की अमीरी रेखा… वो तो अच्छा है कि उन लोगों ने अपने ससुराल जाकर गरीबी रेखा तय नहीं की। ससुराल वाले शरीफ दामादों को खाना भी खिलाते हैं, फिर कुछ देते भी हैं। इसी बेसिस पर प्लानिंग कमिशन वाले कहने लग जाते हैं कि एक बार के खाने में जो 101 की कमाई करता है, वह गरीब कैसे! वह तो अमीरी रेखा के बहुत ऊपर है। मतलब जी… तुम रखो 32 रुपये और मुझे एक ही टाइम का खाना दे दिया करो।
इधर, टीवी एक्सपर्ट भी प्लानिंग कमिशन के एक्सपर्टों जैसे हो रहे हैं। वो बता देते हैं कि इत्ते रुपये जेब में हों, तो गरीबी कट जाती है। पर कैसे कट जाती है, यह नहीं बताते। ये बताने का काम दूसरे एक्सपर्टों का है, तो वो वाले दूसरे एक्सपर्ट कहां हैं? जी… वो लोंबाबर्ग गए हैं, गरीबी की स्टडी करने। पर ये लोंबाबर्ग कहां है? जी यह नहीं बता गए। प्लानिंग कमीशन के एक्सपर्ट कभी पूरी बात नहीं बताते। 32 रुपये में अमीर हो गए, इत्ताभर बता कर जाते हैं। पर इस अमीरी को कहां-कहां यूज किया जा सकता है, यह खुलकर नहीं बताते।
रास्ते में एक भिखारी को एक रुपये का सिक्का देने की कोशिश की। वह बोला नहीं, अभी हम अमीर हो गए हैं, 32 रुपये हो गए हैं। एक बार की चाय का इंतजाम हो गया, डिनर का इंतजाम बाद में करेंगे। साउथ दिल्ली के भिखारी वैसे भी सिक्कों वाली भीख को आमतौर पर पसंद नहीं करते। मैंने उसे बताया कि मेरी बीबी ने दो टाइम के खाने के लिए 32 रुपये दिए हैं। भिखारी हंसने लगा। बोला, मेरे साथ यहीं बैठ जाओ। जब मैं रेस्ट करने जाया करूं, तो तुम मांग लिया करना, इंतजाम हो जाएगा। मुझे उसकी बात में दम नजर आ रहा है। प्लानिंग कमिशन के सहारे रहे, तो दो टाइम का इंतजाम नहीं हो जाएगा। साउथ दिल्ली के भिखारियों के सहारे तो तीन टाइम का हो जाएगा… नहीं क्या!