मंत्रालयों में उलटे लटके आदमी का मन जिन्न है,


मंत्रालयों में उलटे लटके आदमी का मन जिन्न है, बार बार यही रटता है,लूट सरकारी है,
लूट लूट लूट चाहे देश जाये टूट ..
खींच जोर लगा के घसीट,दौड़ लपक बैटन से पीट,
देख मोका है वक़्त कम है,खींच ले,जब तक दम है..

कल तो ज्ञानी ने देखा है,भगत ने जाना है, संतों ने पहचाना है,
अपनी सोच,कल उठेगा, तो भूखा पेट रेंकेगा ..
तब क्या चाहतों का आटा सान,स्वार्थ की भट्टी पे रोटियां सेंकेगा ..

चल उठ सरपट भाग, दौड़ता चल, न जाने क्या है कल,
सयाना बन घर से बहार निकल,क़र्ज़ पे क़र्ज़ ले मुस्कुराता चल..

साहेबों को सहला, चमचे सा ही ही कर हंस दुम हिला,
साए सा पीछा कर दारू पिला,
कभी न कभी तो छींका फूटेगा, तो दोनों हाथ में लडू ले आ...अनाम